खुदका गुमशुदाईकी तलासमे...!



खुदका गुमशुदाईकी तलासमे

लकडाउन कैदखानासे बाहर

एह मुसाफिरको चलते चलते-

जब मेहसुस हुवा फूलोंकी सुगन्ध,

जब दिखाईपड़ा हराभरा पर्यावरण ।

जब हृदयकी कानोमे सुनाईपडा-

पंक्षियोकी संगितवद्ध आवाज ।

जब खुदको मिल्हा-

वायुसे गुफ्तगु कररहा,

तबतक में सिकार बनचुकाथा-

मेरे मोबाइल क्यामेराकी ।

लेकिन, 

में प्रमाणसहित सावित करसक्ता हुँ-

फूलोंकी आँखोने लिईहुई तस्बीरजैसा

सुन्दर, सुगन्धित एवं प्राकृतिक

एह कबि हो ना-सकेगा ।

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साझा-सार्वभौम बिचारहरूको उत्खनन गरौं...!

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